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पाकिस्तान मेल

खुशवंत सिंह

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :208
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2858
आईएसबीएन :9788126705078

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भारत विभाजन की त्रासदी पर केन्द्रित पाकिस्तान मेल सुप्रसिद्ध अंग्रेजी उपन्यासकार खुशवंत सिंह का अत्यन्त मूल्यवान उपन्यास है...

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भारत विभाजन की त्रासदी पर केन्द्रित पाकिस्तान मेल सुप्रसिद्ध अंग्रेजी उपन्यासकार खुशवंत सिंह का अत्यन्त मूल्यवान उपन्यास है। सन् 1956 में अमेरिका के ग्रोव प्रेस अवार्ड से पुरुस्कृत यह उपन्यास मूलतः उस अटूट लेखकीय विश्वास का नतीजा है, जिसके अनुसार अन्ततः मनुष्यता ही अपने बलिदानों में जीवित रहती है।
घटनाक्रम की दृष्टि से देखें तो 1947 का भयावह पंजाब चारों तरफ हजारों-हजार बेघर-बार भटकते लोगों का चीत्कार तन मन पर होने वाले बेहिसाब बलात्कार और सामूहिक हत्याएँ लेकिन मजहबी वहशत का वह तूफान मानो-माजरा नामक एक गाँव को देर तक नहीं छू पाया, और जब छुआ तो भी उसके विनाशकारी परिणाम को इमामबख्श की बेटी के प्रति जग्गा के बलिदानी प्रेम ने उलट दिया।

उपन्यास के कथा क्रम को एक मानवीय उत्स तक लाने में लेखक ने जिस सजगता का परिचय दिया है, उससे न सिर्फ उस विभीषिका के पीछे क्रियाशील राजनैतिक और प्रशासनिक विरूपताओं का उद्घाटन होता है, बल्कि मानव चरित्र से जुड़ी अच्छाई-बुराई की परंपरागत अवधारणाएँ भी खंडित हो जाती हैं। इसके साथ ही उसने धर्म के मानव-विरोधी फलसफे और सामाजिक बदलाव से प्रतिबद्ध छद्म को भी उघाड़ा है।
संक्षेप में कहे तो अँग्रेजी में लिखा गया खुशवंत सिंह का उपन्यास भारत-विभाजन को एक गहरे मानवीय संकट के रूप में चित्रित करता है; और अनुवाद के बावजूद ऊषा महाजन की रचनात्मक क्षमता के कारण मूल-जैसा रसास्वादन भी कराता है।


खुशवंत सिंह, जिसने ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ लिखी।



बचपन से ही सुख-वैभव में पले, विदेशों में पढे़ व्यक्ति का पहले वकालत और फिर इंगलैंड में उच्च राजनयिक पद को स्वेच्छा से ठुकराकर स्वतंत्र लेखन जैसे अनिश्चित और संघर्षमय कार्य में जुटना समझ में न आनेवाली बात तो थी ही। एक दिन बातों ही बातों में उनसे पूछा तो बोले-

सन् 1950-51 की बात है। मैं लंदन में भारतीय हाई कमिश्नर का प्रेस अटैची लगा हुआ था। पिछले चार सालों के राजनयिक जीवन में कॉकटेल पार्टियों, लंच डिनर और रिसेपशनों से मैं ऊब चुका था। तत्कालीन हाई कमिश्नर से मेरे संबंध भी कटु से कटुतर होते चले जा रहे थे। एक सुबह मैंने अपने आप से कहा कि बस, अब बहुत हो चुका। उसी दिन मैंने अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण निर्णय ले लिया। मैंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और पूर्णकालिक लेखक बनने की ठान ली। तब तक सैटर्न प्रेस, लंदन से मेरा पहला कहानी-संग्रह ‘मार्क ऑफ विष्नु’ छप चुका था।
नौकरी छोड़ने के बाद लंदन के हाइगेट में किराए का एक फ्लैट लेकर मैंने लिखना शुरू किया। मैंने सिख इतिहास के दो खंड लिखे जो ‘एलेन एंड अनविन’ से ‘द सिख्स’ नाम से छपे। इसी दौरान मैंने सिखों की प्रातः कालीन प्रार्थना ‘जपजी’ का भी अंग्रेजी अनुवाद किया...

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